पृथ्वी: मानो तो माता वरना कुछ भी नहीं

पृथ्वी: मानो तो माता वरना कुछ भी नहीं

आज मैं यह सोच रही थी कि आज कल लोग ग्लोबल -वॉर्मिंग जैसी समस्या के बारे में बहुत  कुछ कहते हैं परन्तु उसको रोकने का कोई भी प्रयास नहीं करते हैं।
'पर्यावरण बचाओ' और 'पृथ्वी बचाओ' के नारे सुन ने में कितने अच्छे और जोशीले प्रतीत होते हैं परंतु किसी पर भी इनका कोई खास असर नहीं होता। कहने को पृथ्वी हमारी माता है परंतु जाने-अनजाने में हम अपनी माँ को ही दूषित करते हैं ।
एक माँ और उसकी संतान के बीच अनोखा रिश्ता होता है,यह एक ऐसा रिश्ता  होता है 
जिसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता । ठीक ऐसा ही कुछ रिशता हमारा पृथ्वी के साथ है।
 एक माँ अपनी संतान को खुशी व, वो हर चीज देती है जो उसकी संतान के लिए आवश्यक है। ठीक इसी तरह पृथ्वी भी हमें हर खुशी व चीजें देती है, जो हमारे लिए आवश्यक हैं , परंतु आश्चर्य की बात यह है कि हर कोई उसकी ममता को नजरअंदाज करता है।
 आखिर क्यों?
इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमें उसकी दी हुई चीज़ों को ठीक प्रकार से प्रायोग करना नहीं आता। ऐसा होने पर वह चीजें मनुष्य के लिए घातक साबित होतीं हैं।
उदाहरण के तौर पर-
जिस तरह खुले आसमान में, ठंड-भरी रात में, तारों की छाव में अंगीठी जलाकर उसके इर्द- गिर्द बैठना, एक अलग ही अनुभव होता है। हमें गरमाहट, प्यार और पर्यावरण की शांति प्रतीत होती है परंतु वहीं अगर यही अंगीठी एक बंद कमरे में रात भर जलाई जाए तब यह एक घातक गैस 'कारबन मोनोक्साइड' रिलीज़ करती है, जो की मनुष्य की जान ले लेती है।
जिस तरह से हम पृथ्वी का अनादर कर रहें हैं उस तरह से पृथ्वी में उत्पन्न होने वाली क्रियाओं को समझने के दो तरीके हैं:-
पहला :- वैज्ञानिक तर्क से
दूसरा :- मन की भावना व आराधना से
यह बात एक उदाहरण से ज्यादा अच्छे तरीके से स्पष्ट हो जाएगी।
2013 में केदारनाथ धाम में आई आपदा तो सभी को याद होगी। वैज्ञानिक तर्क से देखें तो इस आपदा के होने का कारण, नदी के ऊपर बादल फटना था, जिसकी वजह से नदी ने एक घातक स्वरूप धारण किया। वहीं मन के भाव और आराधना व श्रद्‌धा से देखें तो यह हमारे ही कर्मों का फल था ,पृथ्वी ने अपने रौद्र रूप की झलक दिखाई थी।

अपने इस लेख से मुझे बस यही स्पष्ट करना है कि हमें हमारी पृथ्वी माँ का ध्यान रखना चाहिए। जिस प्रकार हम अपनी माताओं के ख़िलाफ़ एक शब्द नहीं सुन सकते व उनके साथ कुछ ग़लत होते नहीं देख सकते, तब फिर हम अपनी परम माँ यानी हमारी पृथ्वी माँ के साथ ऐसी उपेक्षा होते कैसे देख सकते हैं ?
सोचने की बात है!
अक्षरा चतुर्वेदी
कक्षा-9

Akshara Chaturvedi