ज़िन्दगी की सब्जी मंडी

ज़िन्दगी की सब्जी मंडी

पिछले दिनों सब्जी मंडी जाना हुआl पहले की तरह आजकल भीड़ नहीं होती और हर व्यक्ति दुसरे बच कर निकलता है, महिलाओं से भीl

“भैया आलू क्या भाव दिए”? मैंने पूछा

“20 रूपए किलो”, उसने जवाब दिया बिना मेरी ओर देखेl

“ये तो बहुत ज्यादा है”, हम भारतीयों की जैसी आदत होती है, मैंने कहाl

उसने मुझे जोर से घूरा और कुछ नहीं कहाl मैं आगे बढ़ गया इस उम्मीद में कि इससे सस्ते आलू मिल ही जायेंगेl

अगले सब्जी वाले से पूछा, फिर अगले से, फिर एक और से लेकिन सभी जगह एक ही भावl

अंत में आखिरी वाले से आलू खरीद लिए l लेकिन मन कचोटता रहा l

इस पैसे पर उस पहले वाले का हक़ था, पर मेरे लालच ने उसका हक़ किसी और तक पहुंचा दियाl

साथ ही साथ मन में ठान लिया कि अगली बार उससे ही सब्जी लूँगा ताकि उसकी कमी पूर्ती कर सकूंl यही सोचता अपने आप को संतुष्ट करता घर आ गयाl

लेकिन क्या यह किस्सा सिर्फ सब्जी मंडी का है ? क्या हम यही अपनी ज़िन्दगी के साथ नहीं करते? जीवन के पहले कदम से माता पिता, गुरुजन हमें जो समझाते हैं आदर्श मार्ग पर चलने के लिए क्या हम उस ज्ञान को आत्मसात कर पाते हैं ? क्या हम उस शिक्षा को वाकई में ग्रहण करते हुए अपने जीवन में उतार पाते हैं ? शायद हममें से अधिकतर यह मानेंगे कि “नहीं, ऐसा नहीं होता”l बहुत छोटे होने पर भी मां से जिद करके अपने मन की इच्छा पूरी करवा लेते हैं l कुछ बड़े होते हैं तो माता पिता के सिद्धांत पुराने, दकियानूसी और पुराने लगने लगते हैं l यूं ही समय बीतता जाता है, माता पिता बूढ़े हो जाते हैं और अंत में सदा के लिए हमें हमारी समझदारी के साथ छोड़ जाते हैं और साथ ही छोड़ जाते हैं हमारे लिए यह सीख कि “तुम भी माता पिता बनोगे तब समझ पाओगे”.

समय बीतता जाता है और हमारे बच्चे हमें पुराना, दकियानूसी और अज्ञानी मानने लगते हैं l उस समय शायद हम यह समझ पाते हैं कि हमारे माता पिता उसी पहले सब्जी वाले की तरह थे जो हमें सही ज्ञान दे रहे थे लेकिन हम ही थे जो तीस या चालीस वर्ष का सफ़र करने के बाद या समझ पाए कि वो सही थेl परन्तु यह समय है, केवल आगे चलता है, चाहते हुए भी हम पीछे नहीं जा सकतेl नहीं मिलता मौका अपनी गलती सुधारने काl बस ऐसे ही चलती रहती है ज़िन्दगी पीढ़ी-दर-पीढ़ी l किसी ने सही कहा है कि ज़िन्दगी इतनी छोटी है कि अगर हर बात का अनुभव खुद लेना चाहो तो ज़िन्दगी छोटी पड़ जायेगीl दूसरों के अनुभव से सीखना भी एक शिक्षा ही है l यह लेख पढ़कर अगर किसी संतान को माता पिता की महत्ता समझ आ जाए तो बात हैl नहीं तो आगे सब्जी के बहुत ठेले और मिलेंगेl

SANJAY CHATURVEDI