क्या ऐसी सुबह चाहते हैं हम सभी ?

क्या ऐसी सुबह चाहते हैं हम सभी ?

हर रोज़ की तरह आज भी सुबह टीवी ऑन किया यह सोच कर कि काम पर निकलने से पहले समाचार हेडलाइंस देख ली जाएँ l वैसे तो समाचार का इंतज़ार ही अपने आप में बहुत दुखदाई होता है क्योंकि इन चेनल वालों पर व्यवसाई इतने मेहरबान हैं कि इतने कमर्शियल आते हैं कि आप को वो सभी क्रमवार रटा दिए जाते हैं l समझ में नहीं आता कि हम टीवी पर कोई कार्यक्रम देखने बैठे हैं या विज्ञापन l काश कोई सरकार इस पर भी नियम बना दे या कोई आर टी आई एक्टिविस्ट इस पर भी पीआइएल फाइल कर दे कि व्यक्ति टीवी और केबल के पैसे विज्ञापन देखने के लिए नहीं देता है l

खैर जैसे तैसे एक चैनल पर दिखाई दिया “100 शहर 100 ख़बरें “ l दिल को कुछ तसल्ली मिली कि चलो मुख्य ख़बरें सुनते हैं और काम पर निकलते हैं l शुरुआत हुई बच्ची के बलात्कार से , आगे बढ़ी किसी और बलात्कार की खबर से , फिर पता चला कि किसी ने आत्महत्या कर ली है, आगे चले तो कुछ सड़क दुर्घटनाओं के बारे में बताया गया, कहीं शायद यह खबर भी आई कि फलां फलां जगह पर अधिक बारिश से दीवार गिर गई l चलते चलते यह भी पता चला कि किसी ट्रक पर बिजली का तार गिरने से उसमें आग लग गई और सब सामान स्वाहा हो गया l नंबर तेज़ी से बढ़ रहे थे 45, 45.....49...80..85 l अरे यह क्या हम तो 97 पर पहुँच गए और केवल मृत्यु, बलात्कार, आगज़नी और तोड़ फोड़ की ही घटनाएँ पता चलीं ? आखिर शतक पूरा हो गया और हम घबराये से घर से निकले क्योंकि आतंक, हत्या, दुर्घटना देखे कर निकलते हुए सड़क पर यही सब होता प्रतीत हो रहा था l आलम यह था कि साइकिल वाले को देख कर भी अपनी कार के ब्रेक लगा लेते थे कि कहीं दुर्घटना हो गई और कोई मर गया तो क्या होगा l

जी हाँ, यही हो रहा है आजकल l समाचार देखने के शौक़ीन लोग टीवी का रिमोट हाथ में लिए चैनल बदलते रहते हैं कि शायद कुछ अच्छा देखने को मिल जाए तो अगर कुछ और मिलता है तो वो है 11 फांसी का राज़ केवल इसी चेनेल पर l तो जनाब क्या हमारे आस पास कुछ भी अच्छा कहने लायक नहीं हो रहा ? किसी फुटबाल या हॉकी मैच में जीत भी जाएँ तो वो खबर जाने कहाँ से चुपके से निकल जाती है इन्ही भयावह ख़बरों के बीच से l कहीं को तो अच्छा काम भी हो रहा होगा किसी ने मानवता के नाते किसी की जान बचाई होगी , किसी ने गिरे हुए रूपए उठाकर सही जगह पहुंचकर अपना फ़र्ज़ निभाया होगा, किसी ने रोते बच्चे के आंसू पोंछे होंगे, किसी सिपाही या किसी सैनिक ने अपना फ़र्ज़ अदा किया होगा, किसी सड़क का कोई गड्ढा किसी नगर पालिका ने बिना शिकायत के भरा होगा, कहीं किसी योजना पर अच्छा काम भी हुआ होगा l यानि ऐसे बहुत से अछे काम हुए होंगे जो शायद हमारे कानों और आँखों तक नहीं पहुँच पाते केवल इसलिए क्योंकि हमारा मीडिया नकारात्मक हो चुका है l किसी नेता के गलत बयान को लेकर सभी विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया लेना भी नकारात्मक सोच ही है l क्या ज़रुरत है हमें ओवैसी जैसे लोगों का बयान लेने की जो भारत को अपना देश ही नहीं मानते l घंटों घंटो हमें पाकिस्तान, चीन और कोरिया की तय्यरियाँ दिखाकर डराया जाता है l क्यों नहीं हमारा मीडिया या फैसला कर पाता कि अख़बार के पहले दो पन्नो पर कोई नकारात्मक खबर नहीं दिखाई जायेगी ? अखबार खोलते ही जो हिंसा सुबह सुबह नज़रों के सामने से गुज़रती है उसका कुछ तो असर दिलो दिमाग पर पड़ता ही होगा l हम सभी अपने बच्चों से कहते हैं कि अख़बार पढो तो जनरल नॉलेज बढ़ेगी l क्या बढ़ेगी नॉलेज : देश में कितने बलात्कार रोज़ होते हैं या कितने लोगों को दिनदहाड़े सरे आम क़त्ल किया जाता है या कितने नेताओं ने एक दुसरे को एक दिन में कितनी बार गाली दी ?

अगर बात में दम लगे तो सभी पढने वालों को एक बार विचार ज़रूर करना चाहिए और हो सके तो इस दिशा में एक पहल भी की जानी चाहिए l आजकल हर बात पर ‘change ‘ की मुहीम चलति है तो एक बार और सही l अपने और अपनों की सुबह और दिनचर्या को सुधारने के लिए यह ज़रूरी है l

संजय चतुर्वेदी

SANJAY CHATURVEDI