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होरी है कै राम राज रे।।
जो तू गिनत न कछु काहू की, करत आपनेइ मन के काज रे।।
निधरक अँग परसत नारिन के, गारी बकि बकि लेत लाज रे।।
‘हरीचंद’ भयौ छैल अनोखौ, बरजेहूँ नहिं रहत बाज रे।।