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मारि गयौ पिचकारी, सँवलिया सों मैं सखि हारी।।
ऐसी तानि दई मोरे तन में, चूनरि सुरँग बिगारी।
अबीर गुलाल मलौ मेरे मुख सों, घूँघट पलटि उघारी,
दृगन बिच कसकत भारी।।
बहियाँ पकरि लँगर झकझोरी, कर कमलन गल डारी।
तार तार सब करी कंचुकी, तार कसी रतनारी,
सकल मम लाज उघारी।।
गिरी धरनि गस खाय सखी री, तन मन सुरति बिसारी।
मृदु मुसक्याय लियौ अधरन रस, नटवर छैल बिहारी,
हँसत दै दै कर तारी।।
आली प्रकट भयौ या ब्रज में, नन्द मदन अवतारी।
कथन करूँ गुन कैसें वाके, सकति न गिरा उचारी,
चरण तेरे बलिहारी।।