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होरी नहिं खेलों ननद रिसावै।।
म्हारे पिया के आते जाते, चोरी चुगली खावै।
उनकी बातें सुनि सुनि सजनी, म्हारौं जिया दुख पावै।।
ढफ औ ढोलक झाँझ मजीरा, ग्वालन सें बजवावै।
आपुन झोका लेताँ लेताँ, म्हारे आँगन आवै।।
दूध दही की चोरी करि करि, नाहक चोर कहावै।
नौ लख धेनु नंद बाबा कें, उनकों दाग लगावै।।
गोपिन प्रीति पुरानिन सों यह, होरी के मिस आवै।
‘लाल दास’ लीला पुरूषोत्तम, त्रिभुवन नाथ कहावै।।