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सांवरे रंग में रंगि डारी।।
मैं जमुना जल भरन जाति ही, ओढ़ि कुसुमि रंग सारी।
वे हरि ठाढ़े कदम की छइयाँ, हाथ लिए पिचकारी,
श्याम मेरे सम्मुख मारी।।
केसरि तिलक सीस कौ भींजौ, भींजि गई तन सारी।
चौसठ बन्द कंचुकि के भींजे, झरि गई कोर किनारी,
नथुनियां की गूंज बिसारी।।
दै पिचकारी जात कहां हौ, जान न देउँ गिरिधारी।
अबकी पकरि लेउँगी तुम कों, देखोंगी ठसक तिहारी,
अनोखे होरी के खिलारी।।
अगर सुनें मेरौ बगर सुनें, मेरी सास सुनें दैहैं गारी।
जा नगरी के लोग चबाई, जिनकी रीति है न्यारी,
हमें डर लागत भारी।।