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नैननि अबीर न डारौ, दरस के ये अधिकारी।।
हे आनन्द-कन्द नंदनन्दन, बृजपति कुंजबिहारी।
कालीदमन कृष्ण दामोदर राधावर गिरिधारी,
तको जिय पीर हमारी।।
बिन देखै दुखिया रोवति हों, वदन मयंक निहारी।
तिनके हित बिनवति यह रसना, जानि रसिक हितकारी,
कहा मन माँहि बिचारी।।
हा हा करति मानि जा मोहन, चरनन की बलिहारी।
लूटन दै जग-लाहु जमन कौ, ‘किंकर’ शरण तिहारी,
बिरद नित लेहु संभारी।।