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लाल बिहारी ने मेरे, भरि दियौ दृगनि गुलाल।।
कसकत है निकसत नहीं अजहूँ, देखि सखी मेरौ हाल।।
धोइ धोइ हारी मैं इनकों, मीड़त है गईं लाल।।
”हीरासखी“ कढ़ि गयौ गुलाल पै, कढ़ै नहीं नन्दलाल।।