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होरी नंदनंदन खेलें, अब कैसे लाज रहै।।
जो कोई जाय जमुन जल भरनें, वाही पै रंग परै।।
बाट चलत यह ढीठ लंगरवा, बरजोरी बहियां गहै।।
‘चन्द्रसखी’ या ब्रज कौ बसिबौ, अब कैसें निबहै।।