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कपट कछु जा दइया मारे के मन में, मोसें बातें करत सैनन में।।
झाला दै दै मोहि बुलावै, मधुबन सघन कुंजन में।।
घुंघटा उघारि मेरे अबीर मलत मुख, डारत हाथ कुचन में।।
‘दयासखी’ जा सें मैं हारी, इन फागुन के दिनन में।।