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अब न बनें ब्रज कौ बसिबौ, मोसों बरजोरी कान्ह करै।।
हँसि मुसक्याइ जोरि दृग सों दृग, गहि अँचरा जो धरै।
दान लिए बिन जान देत नहिं, कान्ह ऊपाधि करै।।
होरी के औसर केसरि सों, पिचकारिन रंग भरै।
‘हरिबिलास’ हरि ढीठ लंगरवा, काहू सौं न डरै।।