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(67) (काफी)
बरजौ री जसुदा जी कान्हा।।
हम जमुना जल भरन जाति हीं, मारग मैं इठलाना।
गागरि छीनि महीतल पटकी, लै अबीर मुख साना,
करै होरी कौ बहाना।।
इतने में आए नंदनंदन, घर मैं रोदन ठाना।
एरी मैया! मोहिं बहुत खिजायौ, दै दै नैन निसाना,
उलटि घर लाईं उल्हाना।।
हमरौ ललना पलना झुलत है, बालक है नादाना।
ये क्या जानै रंग रस की बतियाँ, जानै खेल अरू खाना,
बिसरि गयौ तुमरौ ही ग्याना।।
तुम साँची, तुम्हारौ सुत साँचौ, हम सब करत बहाना।
‘छबिनायक’ ब्रज बसबौईं छाँड़ो, ब्रज तजि अंतहि जाना,
करौ अपनौ मन माना।।