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कित गयौ री गुपाल मेरे मल रोरी।।
रोरी मलत चूम मुख लीन्हों पिचकारिन रंग में बोरी।।
दोउ करकमल कंचुकी डारे, सारी झटक गयो मोरी।।
चिंतामणि जो अब पिय पाऊं, भामिन भेष करां गौरी।।