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जा सों आवागमन मिट जावै हमें कोई ऐसी होरी खिलावै।
ज्ञान गुलाल अबीर अरगजा प्रेम रंग बरसावे
केशरि घोर कृपा की भली बिधि धर्म की धूरि उड़ावै।।
धीरज कर ढफ बाजै नई धुनि नाम निरंजन गावे।
क्रोध कुमकुमा मार मार के मोह बली को हटावै।।
राम नाम की लै पिचकारी मुख पर फैक चलावै।
जाके लगत मोह भ्रम छूटै दुविधा दुर्मति धावै।।
कवि शंकर कहे सुनो संत जन फाग यही मोहि भावे।
खेलत फाग मिलै जो सतगुरू रेख पै मेख लगावै।।