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खेलत डोलै फाग री, दशरथ कौ छबीलौ।।
इतते आई जनक नन्दिनी, सखियाँ भरी हैं सुहाग री,
पहिरैं पट नीलौ।।
अनुज सखा रघुनाथ साथ लियें, बांधे बसन्ती पाग री,
कटि-पट चमकीलौ।
‘तुलसीदास’ धनि धनि या छबि पर, हिल मिल खेलौ फाग री,
जाकौ स्वामी रँगीलौ।।