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बहियां पकरि के मरोरी लला ऐसी खेलौ न होरी।
पहले तौ हंसि टेरि बुलावत नाहि करो तौ,
सोह दिवावत फेरि करत बरजोरी। लला...
घूघंट में पिचकारी मारत सिरते पांइननों,
रंगि डारत मुतियन की लर टोरी। लला...
सुनतन अरज गरज में भूले देखि अकेली,
हंसे फूले गालनि मलि दई रोरी। लला...
ऐते हू पै भई न मन की चाह रही,
तोऊकाऊ छनकी रेशम अंगिया छोरी। लला..
बेदर्दी के काम न भावें छतियां दुखतिन,
बतियां आवें ऐसी धरि झकझोरी। लला.....
अब तो ब्रज छाड़े ही बनि है अन्त कहूं,
अब होरी मनिहै ‘नवल’ नारि हों भोरी। लला...