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नित्य मधुर ब्रज-धाम, खेल रहे हरि संग होरी।।
विषय विराग राग रंग लीन्हो, प्रेमसुधा-रस घोरी।
एक लक्ष्य करि मोहन-आनन, भरि पिचकारी छोरी।।
बदन सब अरून भयो री।।
दंभ-दर्प-मद-मोह-कोह सब राख भए जरि होरी।
काम विशु( भयो, हरि मुख पै राजि रह्यौ बनि रोरी।।
मिटी जग की सब खोरी।।
नाते नेह खेह भये सारे, नातो एक रह्यौ री।
नेह-बिन्दु सब नेह जलधि मिलि सागर रूप लह्यौ री।।
प्रेम-रस-रंग छयौ री।।