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सखी री! या ब्रज में अब कैसें बसैं, अनरीति न जाति सही।।
गैल चलत वा छैल नन्द के ने, बहियाँ आनि गही।।
मलि गुलाल मुख रंग भिजोई, सौ सौ बात कही।।
‘नारायण’ मग लोग हँसें सब, आजु न लाज रही।।