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लियें ब्रज गोप सखा सब संग, बजावै मुरली तूस मृदंग।
बजै बीना रबाब मुंहचंग, खंजरी महुअरि चंग उपंग।।
सारंगी ताऊस गति, झांझ सरोद सितार।
ढफ ढोलक मंजीरा घुंघरू, सहनाई नक्कार,
भरे सुर तम्बूरा के तार।। मची रंग०।।
राग भेरों हिंडोल अलाप, मेघ और मालकोश की छाप।
भरै सुर दीपक हू के राग, सिरी गौरी खम्माच अलाप।।
ईमन कजरी परज कल्याना, केदारा के बोल।
सारँग सोरठ जै जैवंती, कलिंगरा सिरमौर।।
देश-धुनि माँड़-गौड़ मल्हार ।। मची रंग०।।
संग राधे नवल गोरी, चूर मृगमद कपूर रोरी।
कुमकुमा केसरि रँग घोरी, चपल अति करें चित चोरी।।
चलैं पिचक्का डोलचीं, चलैं उठै मग कींच।
कहै परस्पर होरा होरी, आनंद उमंगि उलीच,
बहै बरसाने रंग को धार ।। मची रंग०।।
सैन दै दै राधे मुसिकाति, लगइयो हरि पकरन की घात।
गहरि गंभीर गुलाल उड़ात, पकरि लये नंद राय के लाल।।
आँखिन काजरू आँजि कें, गुलचा दौन्हे गाल।।
घेरदार घाँघरि पहिराई, शीश चूनरी डारि,
लै गई गोकुल की चौपारि ।। मची रंग०।।
गतिन पै तांडव नाच नचाय, कहै जसुदा के आँगन जाय।
करौ फगुआ की त्यारी माय, जीत भई मेरी श्याम हराय।।
मेवा झोरी डारि कै, कहै जसोदा माय।
धन्य भाग मेरे घर आई, हिय अभिलाष बढ़ाय,
निरखै ‘प्रहृद’ ये नित्य बहार ।। मची रंग०।।