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आम पकै महुआ गदराने, निबुला बौरी देत।
जब निबुलन में रस परयौ रे, छाँड़ि चलौ परदेस।।
कबहुँ न हाथ रचे मेंहदीं सों, कबहुँ न बाँधे केस।।
कबहुँ न माँग भरी मोतियन सों, कबहुँ न सोई पिय सेज।।
राधा प्यारी सोच करति हैं, कृष्ण तुम्हारे हेत।
‘सूर श्याम’ सों यों जाइ कहियो, कब आवौ इहि देस।।