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श्याम तुम्हें हेरत रैन बिताई।।
जब सें गये मोरी सुधि हू न लीन्ही, क्यों ठानी निठुराई।।
अटकै प्राण दरस कों तेरे, काहे सुधि बिसराई।।
हमरे तो सरवस तुमहिं हौ, तुमहीं सौं डोर लगाई।।