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दशरथ-सुत राज दुलारे, जनकपुर खेलन आये होरी।
एक ओर भरत शत्रुघ्न लछिमन, एक ओर जनक-किशोरी।।
लै ढफ ताल बजावत गावत, राजा जनक की पौरी।
राम लखन अरु भरत शत्रुघन, हँसि हँसि रंग कियौ री।।
केशरि रंग कनक पिचकारी, डारैं सखिन की ओरी।
इत दशरथ उत जनकराज हैं, ब्रह्मा वेद पढ़ौ री।।
नारद मुनिजन होरी गावें, शिव कैलाश हँसौ री।
ऐसौ फाग राम ने खेलौ, घर घर रँग बरसौ री।।
सब सखियाँ मिलि देत असीसें, अटल रहै यह जोरी।