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लला मोरी सबरी चुनरि रंगि डारी।।
लै गागरि पनियाँ कों निकसौ, घूँघट में पिचकारी।।
बरजि रही बरजौ नहिं मानत, नैनन में तकि मारी।।
‘रामप्रताप’ भयौ या ब्रज में, ऐसौ ढीठ बिहारी।।