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लला हो रँग की चोट मेरें भारी लगै,
पिचकारिन काहे कों मारी।।
भींजि गयौ मेरौ चीर चादरा, भींजि गई तन सारी।।
घर जैहों तौ सासु रिसैहै, ननद सुनै देइ गारी।।
सैयाँ सुनै सतराय साँवरे, सँग की हँसैं दै तारी।।
‘चन्द्रसखी’ भजु बालकृष्ण छवि, तुम जीते हम हारी।।