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कान्हा होरी के दिनन में, नित नई धूम मचावै।।
ग्वाल बाल सब सखन संग लियें, मेरे ही द्वारें आवै।।
कहृौ सुनौ कछु मानत नाहीं, मन आवै सोई गावै।।
‘नागरीदास‘ ढीठ लंगरवा, जाहि कोऊ समुझावै।।