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लाल मोरी अँखियन करकै, ऐसौ न फेंकौ गुलाल।।
हम बोलति हितके चित सों तुम, ता पै करत यह हाल।।
बाट चलत मेरौ घूँघट खोलत, रोरी मलत लै गाल।।
‘रामप्रताप’ हँसति मुख मेरौ, हेरि हेरि ब्रजबाल।।