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ऊधौ जोग सिखावन आये।।
हम रंग राँची मन मोहन की, योग ध्यान बिसराये।
ता पर लाये जोग की पाती, घाउ में नौंन लगाये।।
कोयल के सुत कागा पाले, हँसि हँसि लाड़ लढ़ाये।
बड़े भये जब उड़ने लागे, कुल अपने कों धाये।।
दादुर मीन प्राणपति एकहि, एक संग सुख पाये।
मीन मरी जल के बिछुरे ते, दादुर कठिन कहाए।।
मन की माला तन मृग छाला, विरह की भस्म लगाये।
‘हरीदास’ हरि के मिलिबै कों, तपसी भेस बनाये।।