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अँचरा न सम्हारै, बिरहा रस माती।।
ऊँचे घाट तर जमुना बहति है, तहाँ बैठी जेहरि भारै।
जेहरि भारि धरै सिर ऊपर, मंद मंद पग धारै।।
जेहरि उतारि धरी अँगना में, तहाँ बैठी केसरि गारै।
केसरि रंग भरै पिचकारी, लौहरे दिवर पै डारै।।
दियला उजेरि धरौं मंदिर में, तहाँ बैठी अंजन सारै।
दै अंजन खंजन से नैना, रसिया ओर निहारै।।