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चलौ सब देखि आबैं, बृज में है होरी की धूम।।
प्रात होत ही ग्वाल उठे सब, रंग की धूम मचाईं
कृष्ण कन्हैया नाचत डोलै, संग में लोग लुगाई।।
विन्द्रावन की कुंज गलिन में, चहुं दिस उड़ै अबीर।
मथुरा गोकुल लाल लाल भए, कालिन्दी कौ नीर।।
रंग लाल रूप लाल अधर अधिक लाल,
दृगन के डोरै लाल रोरै लाल पलकै।।
चीर लाल चोली लाल लाल डोरे गुहे बाल,
बेसरि की बैंन्दी भाल हिए माँझ झलकै।।
कहै मृग लोचनी सुहाग भाग ते रे आज,
सोहै लाल भाल बैंदी और सोहें अलकैं।।
पान लाल पीक लाल पीक हू की लीक लाल,
ऐते लाल पाइ प्यारी लाल हू कौ ललकै ....
चलौ सब देखि आबै।।