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ऐसी बंसी बजा रे मोहन, जैसी बजाई तैने वा दिन की।।
काली मर्दन कंस निकंदन, गौतम नारि शिला तारी।।
बैठि कदम तर बंसी बजाई, मोहि लईं ब्रज की नारी।
भारत में भारई के अंडा, घंटा टूटि परयौ भारी।।
वा दिन वा दिन वा दिन की।।