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डगर मोरी छाडौं श्याम, बिधि जावोगे नैनन में।।
भूलि जाउगे सब चतुराई, मारौंगी सैनन में।।
जो तेरे मन में होरी खेलन की, तौ ले चलि कुंजनि में।।
चोवा चन्दन और अरगजा, छिरकौगी फागुन में।।
‘चन्द्रसखी’ भजु बालकृष्ण छबि, लागी है तन मन में।।