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हम चाकर राधारानी के।।
श्री नंदनंदन ठाकुर के, वृषभानु लली ठकुरानी के।।
निरभय रहत बदत नाहीं काहू, उर नहिं डरत भवानी के।।
”हरीचन्द्र“ नित रहत दिवाने, सूरत अजब निवानी के।।