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पीरी परि गई रसिया के बोलन सों।।
याद पर° सब रसकी बतियाँ, बढ़ि गयो विरह ठठोलन सों।।
चलि न सकी जाकी रही ठौर ही, डोली नैक न डोलन सों।।
”हरीचन्द्र“ सुधि परी फेरि पिय, प्यारी के घूँघट खोलन सों।।