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जाकी अंगिया बार बार फरकै।।
कुच फरकैं बाकी बाँयी भुज फरकै, सिर की चूनरि सरकै।।
पिय परदेस मास फागुन कौ, सोचत आँसू ढरकै।।
‘परमानंद’ आस पूरन भई, पिय पाये भुज भरिकै।।