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गिरधारी पिचकारी मोरें क्यों मारी रे, निपट अनारी मोरी आँखिन में।।
बरजि जसोदा अपने लाल कों, क्यों नहि राखति आँखिन में।।
चोवा चंदन अतर अरगजा, अबीर भरें दोऊ काँखनि में।।
‘चन्द्रसखी’ भजु बालकष्ण छवि, लखि लीनौ मैंने लाखन में।।