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नटवर गोपिन नाच नचावै, गलियन बीच घुमावै।।
हरि कौ ऊघम लखि बृजबाला, जसुदा कों गुहरावै।
तैरौ लाला अजब रसाला, माला चीर चुरावै।।
आज सिदौसी हों उठि बैठी, दधि माखन बगरावै।
मैं कछु कही खाट सें बांध्यौ, नित नये जादू ढावै।।
घर में जावै माखन खावै, संग में ग्वालन लावै।।
पर घर जावै रार मचावै, नाक चना बिनवावै।।
रोज उल्हैने सुनि जसुदा जी, ऊखल से बंधवावै।
सत्ता नारायन की देखी, रस्सी हू घटि जावै।।