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रंग हो हो, हो हो, हो होरियाँ।।
इत बने नवल किशोर ललन पिय, उत बनीं नवल किसोरियाँ।।
ये नव नील जलद तन सुन्दर, वे श्यामल मृदु गोरियाँ।।
इनकें अरून बसन तन राजत, उनकें पीत पिछौरियाँ।।
राखी हैं करनि दुराय सबै मिलि, केसरि कनक कमोरियाँ।।
छलबल करि दुरि मुख लपिटावत, चंदन बंदन रोरियाँ।।
बाजत ताल मृदंग झांझ ढफ, मधुर मुरलि धुनि घोरियाँ।।
नाचत गावत करत कुलाहल, परम चतुर मृदु गोरियाँ।।
याही रस निवसौ निसि वासर, बँधी हैं प्रेम की डोरियाँ।।
‘माधुरी’ के प्रभु सुख के कारण, प्रगटी हैं भूतल जोरियाँ।।