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अब तो सखी फागुन रितु आयौ, ढफ गोपाल बजावै।
खेलौं फाग श्याम सँग सजनी, जोर मनोज जनावै।।
केसरि अबीर गुलाल मलै मुख, मोहि नँदलाल सुहावै।।
जौ लों वाकौ मुख नहिं देखों, जिय मेरौ ललचावै।।
एक तौ डर मोहि सासु ननद कौ दूजैं लाज लजावै।।
मुरली में लै नाम हमारौ, हरि विलास नित गावै।।