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चलौ देखियै बरसाना, जहाँ मची रंगीली होरी।।
निकसीं भवन-भवन तें, हाथों गुलाल रोरी।
मनुहार कैसी झलकै, मानों प्रेम रंग बोरी।।
अबीर गुलाल की घुमड़नु में, पकरे है नंदलाला।
फगुआ हमारौ दीजै, हंसि माँगतीं बृज वाला।।
बाजै रबाब भेरी, ढपताल और मृदंगा।
दीनारा बीन बाजै, महुअरि मुहचंग उपंगा।।
नंदनंदन श्री गिरधारी, बृषभानु की दुलारी।
‘रसखान’ खैलैं होरी, चिरजीव रहे यह जोरी।।