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तुम छके छैल से डोलौ।।
मनमोहन मदमाते छैला, मन आवै सोई बोलौ।
अंत जायके रास रचावौ, हमरी डगरि कबहुँ नहिं आवौ।।
जाय रहौ उनहीं के मोहन, बतियाँ गढ़ि-गढ़ि छोलौ।।
जानी मोहन प्रीति तुम्हारी, कपट गाँठि नहि खोलौ।।
‘हरीचन्द्र’ मिलिबे के कारन, बतियाँ हंसि हंसि बोलौ।।