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ऊधौ स्याम कहाँ पहुँचाये, हम सब फिरत भकाये।।
जबसें छोड़ी गोकुल नगरी, सुधि बुधि सब बिसराये।
जैसें जल बिन मछरी तड़पै, तैसें ही हम बिलखाये।।
आस दई अभिलास बढ़ाई, बातनि में भरमाये।
सब ब्रजवाला ढूँढै लाला, जसुमति आस लगाये।।
गोपी टेरें ग्वाल पुकारें, गइयन रुदन मचाये।
अब तो हेरौ हे जदुनंदन, दधि माखन संग खाये।।
कान्हा तौ कुबजा सों रीझे, हमकों परत लखाये।
ऊधौ तुम कछु जतन विचारौ, हमरौ मान न जाये।।