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ए रे कान्ह आयौ नहीं, बीति गईं रतियाँ।।
बिन मनमोहन कल न परति है, धड़कि उठीं मेरी छतियाँ।।1।।
छिन आँगन छिन बाहिर भीतर, छिन छिन चढ़त अटरियाँ।
”मीरा“ के प्रभु गिरिधर नागर, काहे सुरति बिसरियाँ।।2।।