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तू बड़ भाग सुहाग भरी, ब्रजराज तेरे घर आवत है री।।
जो कबहूं तू मान करै, बहियाँ गहि तोहि मनावत है री।।
तोहि रिझाइ भली विधि सों, मुरली में तेरौ जस गावत है री।।
जो कबहूँ तू बन कों चलैं, पाछे सें तेरे उठि धावत है री।
तोहि लै बन में रास करै, मग झारत फूल बिछावत है री।।
सारद सेस महेस रटैं, चतुरानन ध्यान न आवत है री।
सोई अब ‘सूर’ भयौ बस तेरे,महावर पाँय लगावत है री।।