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मोहि न सुहाइ चुनरि पचरंगी।।
यह चुनरि मेरे मैकें से आई, गुरु मेरे ने दई रंगवाइ।।
यह चूनरि मेरे धुमिल है गई, सतगुरुजी ने मेरी दई बदलाइ।।
चुनरि ओढ़ि में गई रे बजारैं, काल बिचारौ फिरि फिरि जाइ।।
कहत ”कबीर“ सुनौ भाई साधो, बार बार मेरे आवै जाइ।।