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नन्द कौ लाल चबाई, आज पनघटवा धूम मचाई।।
पनियाँ क्यों भरिए डरिए जिय, मरिए लाज न ढीट ढिटाईं
रंग बोरत छोरत चोली बंद, पुनि पुनि मृदु मुसकाई।।
गोकुल में कहों कानि कौन विधि, को राखे अब हो होरी आईं
अवरे समूह अहीरन के घर, भई है नई ठकुराई।।
करत अनीति नीत सब छाँड़त, रंग बरसत और सुख सरसाईं
बरज न सकत लखत ऐसी गति, मानों सब की मति बौराई।।