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साँमरे तेरी शरण अब आयौ।।
मैं भटक्यों बाहिर भीतर, चैन कहूँ नहिं पायौ।।
यह संसार स्वार्थ में डूबौ, प्रेम शु( नहिं भायौ।
प्रेम भाव वह कहाँ विलानौ, जो गोपिन दर्सायौ।।
दिन नहि चैन रात नहि निंदिया, हेरत जन्म बितायौ।
वह शुभ घड़ी निकट प्रभु दीजौ, युगल चरण शिर नायौ।।