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राधेश्याम कों मिलाय दै री, सहेली गुण मानोंगी तेरौ,
ललचै दरसन कां मन मेरौ।। राधेश्याम कों।।
आवत विषय ज्वार, जाहि कैसें धोवै ताहि,
कालि जो करत सोई, आज करो मेरौ काज,
बिना रामचन्द्र के, भरत ने न कीन्हों राज जी।
वही मेरौ हाल, मैने तोसों कही खोलि लाज,
जीउ डूबौ जात ज्यों, समुद्र में जहाज जात,
नेंक ठोकर लगाय दै री।। राधेश्याम कां।।
एक सखी बोली नेंक, हौ है वीरा तेरौ काज,
धीर के धरें तें राम, जानकी कों ब्याहि लाये,
धीर के धरे तें उमा, महादेव वर पाये जी।
धीरज में गोकुल, गोपाल जस राखि लाये,
धीरज में ब्यास जू ने चारि वेद गीत गाये,
ऐसे मन समुझाय लै री।। राधेश्याम कों।।
पीताम्बर लकुट, मुकुट अरू मंद हास,
दरस किये तें पाप, जनम के भागि जात,
ठाड़ी हिड़बिड़ाति, मन में उदास भईं जी।
तौलौं आय बाँसुरी, बजाई पिय प्यारी पास,
छूटि गई नारी-व्यारी, लैन लगी पूरी साँस,
काशी में बसेरौ धुनि, गावैं ‘श्रीलाल दास’
चरण कमल लपिटाय लै री।। राधेश्याम कों।।