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झूमि सब आई हैं गोपी झपटि रहे नंदलाल।
ज्यों घन में चमकैं चपला अति त्यों चमकै ब्रजबाल।।
ए अब अनुपम नेह निरखि मोहन प्रति सुर मुनि भए निहाल।
जुरि मिलि चाले नंद भवन कों, गाइ रहे मृदु ख्याल।।
ए अब फगुआ माँगि रहे हैं नंद घर, नाचत हरि संग ग्वाल।
फागुन मास बड़ौ सुखदाई, रचौ फाग गोपाल।।