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जगावति राधा प्यारी - सोइ रहे बनवारी।।
घर घर तैं बनिता सब आईं, हाथ लिएँ पिचकारी।।
ए अब रंग की घोरा घोर मची है, मगन होत बृजनारी।।
फागुन भरि कोऊ जाउ कहूँना, देखौ ठाठ मुरारी।।
ए अब गोकुल की सकल गलियन मैं, भरि रही रंग किआरी।
तब चलियो वृज राज दुआरें, डटि रही भीड़ अटारी।।